एक कदम जीवन की ओर

जिंदगी बिताने के कई कई तरीके हो सकते हैं पर जिन्दादिली जिन्दगी अच्छे स्वास्थ्य में ही निहित हैं |

चुने बेहतर बने बेहतर

अच्छा खरीदार बनने के लिए खरीद की परख आवश्यक हैं | हीरे की परख सिर्फ जौहरी ही करता हैं | क्या आप अपने खरीद की परख कर रहे हैं |

मुस्किल नहीं आसान हैं

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Thursday 19 January 2017

हवा की शुद्धता के लिए प्रदूषण के खिलाफ जनांदोलन छेड़ने की आवश्यकता - खुद सुधरे, औरो को सुधारे #Air_Pollution



राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 2014 में ही अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा विश्व के सबसे प्रदूषित शहर की सूची में पहले स्थान पर रखा गया था। केंद्र और राज्यों की सरकारों की लापरवाही वाले रवैए की वजह से इस वर्ष दीपावली के बाद से दिल्ली का जनमानस धूलभरी धुंध से ग्रस्त नजर आ रहा है। लोगों का वायु प्रदूषण की वजह से घर से बाहर निकलना दूभर हो रहा है। पेरिस जलवायु समझौते के अंतरराष्ट्रीय कानून बन जाने के बावजूद हमारी सरकार नींद से नहीं जाग रही है। तो क्या आप लोग भी हाथ पे हाथ धरे रहेगे | 

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ 2014 में दिल्ली के 2 नौनिहालों ने अलख उठाई थी।

उस वक्त सरकारी तंत्र और जनता में जागरूकता की ज्वाला कुछ समय के लिए जागृत हुई थी और कुछ फौरी कदम राज्य सरकार द्वारा उठाए गए थे जिससे दिल्ली की प्रदूषित होती वायु के स्तर में कुछ गिरावट दर्ज की गई थी। 

लेकिन 'दिन बीता बात बीती' की तर्ज पर यह कार्रवाई हवा-हवाई हो चली और पुन: दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में वायु में धूल और धुएं की मात्रा बढ़ गई जिससे लोगों को सांस लेने में कठिनाई होने लगी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 2014 में ही अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में पहले स्थान पर लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

हर वर्ष की तर्ज पर इस वर्ष भी दीपावली के विस्फोटक रसायनों जैसे मैग्नीशियम आदि के जलने और खेत की पराली को जलाने के बाद दिल्ली और हरियाणा से सटे आस-पास के वातावरण में वायु प्रदूषणरूपी जहर की मात्रा अधिक हो गई है। सुप्त सरकारी तंत्र का ध्यान वायु में घुली जहर की तरफ आकर्षित करने के लिए न्यायपालिका को संज्ञान लेना पड़ा और उसने तात्कालिक रूप से प्रदूषण के खिलाफ कदम उठाने के लिए दिल्ली सरकार को विवश किया।

न्यायपालिका ने कहा कि दिल्ली से सटे क्षेत्रों में फैले प्रदूषण को दूर करने के लिए 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों आदि पर पाबंदी लगाई जाए। पर्यावरण प्रदूषण आज संपूर्ण विश्व के लिए संकट की घड़ी बना हुआ है, लेकिन भारत में इसकी स्थिति और विकट हो चली है। जिस देश में स्वच्छता को लेकर अलख निकल पड़ी हो, वहां के पर्यावरण के लिए ऐसी विकट स्थिति शुभ नहीं कही जा सकती है।

पर्यावरण में फैल रहे प्रदूषण के लिए केवल सरकार को ही जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता है। इसके लिए देश के नागरिक भी जिम्मेदार हैं, जो पर्यावरण के लिए अपने उत्तरदायित्वों का निवर्हन नहीं कर रहे हैं। देश में करोड़ों रुपए विस्फोटक ज्वलनशील पटाखों आदि पर उठा दिए जाते हैं, जो प्रदूषण के लिए अहम जिम्मेदार होते हैं। इन पैसों का उपयोग अगर दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर को निर्मल बनाने में किया जाए तो स्वच्छ वायु में सांस ली जा सकती है। लोगों की सोच में खोट होने की वजह से देश में पर्यावरण की स्थिति में परिवर्तन नहीं हो पा रहा है। इन पटाखों में विषैला रसायन और सीसा आदि होता है, जो पर्यावरण में घुलकर वातावरण को प्रभावित करने का कार्य कर रहे हैं।

दिल्ली जैसे क्षेत्रों में प्रदूषण की वजह पटाखे ही नहीं, खेतों की पराली जलाने और मोटर वाहन आदि भी बराबर रूप से जिम्मेदार कहे जा सकते हैं। खेत की पराली जलाने के मामले में उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल देश के लिए नासूर साबित हो रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सालाना 9 करोड़ टन से अधिक पराली खेतों में जलाई जाती है जिसकी वजह से पर्यावरण के नुकसान के साथ मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी प्रभावित होती है।

राज्य सरकारें हर फसली सीजन में अपना घर फूंक तमाशा देखने का कार्य करती आ रही है जिसके कारण स्थिति यह उत्पन्न होने की कगार पर आ चुकी है कि सोना उगलने वाली धरती बांझ बनने की कगार पर है और वायु प्रदूषण से सांस लेना मुश्किल हो गया है। इन सभी तरह के वायु प्रदूषण के जिम्मेदार घटकों से निपटने के लिए न सरकार कोई ठोस कदम उठाती दिख रही है और न ही जनता अपने आप में इस भयावह मुसीबत की निजात के बारे में कोई सुध लेती दिख रही है।

खेती और किसानों के लिए अहम पराली को संरक्षित करने के बाबत बनाई गई राष्ट्रीय पराली नीति भी राज्य सरकारों के ठेंगा पर दिख रही है। गेहूं, धान और गन्ने की पत्तियां सबसे ज्यादा जलाई जाती हैं। अधिकृत रिपोर्ट के अनुसार देश के सभी राज्यों को मिलाकर सालाना 50 करोड़ टन से अधिक पराली निकलती है। उम्मीदों से भरे प्रदेश उत्तरप्रदेश में 6 करोड़ टन पराली में से 2.2 करोड़ टन पराली जलाई जाती है। इसी तरह पंजाब में 5 करोड़ टन में से 1.9 करोड़ और हरियाणा में 90 लाख टन पराली जलाई जाती है। अनुमानित आंकड़े के अनुसार सिर्फ 1 टन पराली जलाने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फॉस्फोरस, 25 किग्रा पोटैशियम व 1.2 किग्रा सल्फर पराली जलाने से प्रतिवर्ष खेत से नष्ट हो जाते हैं। इसके कारण कई तरह के सूक्ष्म पौष्टिकता भी खेत से नष्ट हो जाती है और वायु प्रदूषण के घटक के रूप में सहायता प्रदान करती है।
पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण और नुकसान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पराली नीति बनाई जिसे राज्यों को सख्ती से लागू करने को कहा गया लेकिन इसका अमल न के बराबर प्रतीत होता है। पराली नीति पर अमल के लिए विभिन्न कृषि, वन और पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी-अपनी तरफ से राज्यों को वित्तीय मदद पहुंचाने का प्रावधान है। इसमें फसल की कटाई के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी वाली मशीनें और खेत को बगैर साफ किए फसल की बुवाई की मशीन प्रमुख है। फिर भी इस पर सरकार सही दिशा में कार्य करती नहीं दिख रही है।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धरती से अन्न के अलावा अन्य निकलने वाले पदार्थ भी उपयोगी होते हैं अत: पराली का उपयोग पशु चारा, कंपोस्ट खाद बनाने, ग्रामीण क्षेत्रों में छप्पर बनाने, पेपर बोर्ड बनाने आदि में इस्तेमाल के लिए सरकार द्वारा जनता को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
बढ़ते हुए वायु प्रदूषण को देखते हुए सरकारों को उचित और सकारात्मक पहल करने की जरूरत है जिससे कि समय रहते प्रदूषण पर काबू पाया जा सके।

वायु प्रदुषण मुक्त बनाने हेतु हमे कुछ आवश्यक कदम उठने होंगे | 
१- वृक्ष रोपण ज्यदा से ज्यादा करे 
२- स्वचालित वाहनों में - धूम्र युक्त वाहनों का इश्तेमाल ज्यादा हो 
३- घर में #Air-purifier का इस्तेमाल करे 
४- कलकारखानो पे प्रदुषण फैलाने पे कड़ी कारवाही हो 
५- सभी संभावित विकल्प को चुने जो वायु को प्रदूषित न होने दे | 

#Air_Pollution #Air-purifier 

Wednesday 18 January 2017

वायु प्रदुषण फेफड़ो के लिए जानलेवा ? #AirPurifier


फेफड़ों का काम वातावरण से ऑक्‍सीजन लेना और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। साथ ही यह शुद्ध रक्त धमनी द्वारा दिल में पहुंचता है, जहां से यह फिर से शरीर के विभिन्न अवयवों में पम्प किया जाता है, इसलिए फेफड़ों का स्‍वस्‍थ रहना जरूरी है। और फेफड़ो को स्वास्थ्य रखने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता हैं तो शुद्ध वायु की |
दिन प्रतिदिन कल-कारखाना औधोगिक विकास ने जिस चीज़ को विगाड़ा हैं वो हैं – वायु और जल ! आज के दिन ये दोनों ही विकृत रूप में पायी जा रही हैं | बात करे तो जल के बिना आदमी १ दिन तो जी सकता हैं परन्तु क्या वायु के बिना जीवन एक पल भी संभव हैं ? यहा पे बैठे सभी का एक ही जबाब होगा वो भी होगा तो बस ना में | अगर कोई हो जो वायु के बिना १ पल भी जीवित रह सकता हैं तो वो अवश्य बताये ? (हास्य व्यंग)
जल की शुद्ध करने के लिए वाटरप्यूरीफिएर मार्किट में बहुतायत हैं | जिनकी क्वालिटी में लगभग सबकी सामनता एक हैं | परन्तु एयरप्यूरीफिएर बहुत ही कम हैं जो क्वालिटी का गारेंटी देते हो |
क्या आपको पता हैं दमा के मरीजो की संख्या विगत सालो में कितनी बढ़ी हैं तो एक आकडा कहता हैं आज – हर ५० आदमी में ३५ आदमी सास की बीमारी से आज परेसान हैं | और ३५ में से ३० आदमी अपनी जीवन का मूल्य आधे में बिता के चले जाते हैं |
तो वायु की शुद्धता को ध्यान में रखते हुए | अपने आसपास अधिक से अधिक पेड़ लगाये | और घर में सोते वक्त एयरप्यूरीफिएर का इस्तेमाल करे | क्योकि सोते वक्त व्यक्ति सबसे ज्यदा आक्सीजन का अवशोषण करता हैं ! और हा एयरप्यूरीफिएर को खरीदते समय इसकी क्वालिटी की जाच अवश्य करे | कुछ विशेष एयरप्यूरीफिएर हैं जिन्होंने अपना क्वालिटी संमय के साथ बनाये रखा हैं | इस्तेमाल करना हैं तो इसी कंपनी का ही करे | ये कंपनी हैं –
अ)    ब्लू एयर (Blue Air)
आ)  हनी वेल (Honeywell)
इ)      स्मार्ट एयर (Smart Air)
#Air_Purifier #Air_Purifier_For_Dust